
वृंदावन के प्रसिद्ध श्री ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में ऐसा दृश्य शायद ही किसी ने सोचा हो। कई सदियों में पहली बार भगवान बांके बिहारी को सुबह और शाम का भोग नहीं चढ़ाया गया।
जहां हर दिन लाखों भक्त दर्शन के साथ प्रिय भोग की कल्पना करते हैं, वहां इस बार भक्त ही नहीं, स्वयं ठाकुर जी भी पूरे दिन भोग से वंचित रह गए।
वजह बनी तनख्वाह, नहीं आई ‘मिठास’
इस असामान्य स्थिति की वजह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि प्रबंधन की लापरवाही बताई जा रही है। मंदिर के अधिकृत हलवाई मयंक गुप्ता को पिछले कई महीनों से वेतन नहीं मिला था। जब मिठास बनाने वाले को ही समय पर मेहनताना न मिले, तो भोग कैसे बने?
कौन-कौन से भोग नहीं बने?
वेतन विवाद के चलते ठाकुर जी के लिए एक भी भोग तैयार नहीं हुआ—
- बाल भोग
- राजभोग
- उत्थापन भोग
- शयन भोग
यानी पूरे दिन ठाकुर जी का रसोईघर सूना रहा। श्रद्धा की परंपरा कागज़ी फाइलों में उलझ गई।
सोमवार को खुला मामला
सोमवार को जब मंदिर कमेटी को जानकारी मिली कि सुबह बाल भोग और शाम का शयन भोग नहीं लगा, तब जाकर हलवाई से सवाल किया गया।
मयंक गुप्ता ने साफ कहा— “जब महीनों से भुगतान नहीं हुआ, तो भोग कैसे बनाऊं?”

पुजारी नाराज़, कमेटी ने संभाली सफाई
घटना को लेकर मंदिर के पुजारियों में गहरी नाराजगी देखी गई। उनका कहना है कि “भोग ठाकुर जी की सेवा है, इसे वेतन विवाद से ऊपर रखा जाना चाहिए था।”
वहीं, मंदिर की हाई-पावर्ड कमेटी ने स्थिति संभालते हुए कहा है कि बकाया वेतन जल्द चुकाया जाएगा। भविष्य में ऐसी घटना न हो, इसके लिए निर्देश जारी होंगे।
आस्था बनाम प्रशासन
यह मामला एक बड़ा सवाल छोड़ जाता है— क्या आधुनिक प्रबंधन की देरी, सदियों पुरानी आस्था पर भारी पड़ सकती है?
जब भगवान के भोग पर भी सिस्टम हावी हो जाए, तो भक्तों की भावनाएं आहत होना स्वाभाविक है।
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